जय किसान और पलायन होते युवा किसान
- Suresh Gorana
- Sep 8, 2022
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किसानी अद्भूत और अनोखी नैसर्गिक कला है जिसके सहारे किसान हमेशा कुदरत के समीप रहकर जीवन का भरपूर आनंद लेते रहा है। जिसके पास कुदरत का ऐसा अखूट खजाना हो वह किसान दिल खोलकर देनेवाला हमेशा रहा है।
उदाहरण के लिएः
गुरुद्वारों के लंगर, जहाँ सेवा ही सेवा है, कुछ भी लेने की तो मनसा तक नहीं। ऐसे ही सेवाधाम और अन्नक्षेत्र देश में जगह-जगह कार्यरत है और सभी का मज़बूत आधार किसान ही है, जय किसान।
आज किसानों की बुनियादी समस्याएँ सिर्फ़ दो ही हैः
किसानी के लिए मज़दुरों की मुश्किल उपलब्धी और बढ़ता हुआ खर्च
किसानी के लिए पर्याप्त / समयसर पानी की आपूर्ति का अभाव एवं अप्रमाण / अनिश्चित बारिस का होना
ट्रेक्टर और विविध बाँध परियोजनाओं द्वारा उक्त दो बुनियादी समस्याओं को सुलझाने के प्रयास बेअसर और युवा किसानों को किसानी के लिए प्रेरित करने में विफ़ल रहे है। किसानी के प्रति युवा किसानों का तेजी से मोह भंग हो रहा है और रोजगार के तलाश में अपने गाँवों से शहर को पलायन हो रहे है।
मतलब,
सरकार द्वारा किसानों को विविध प्रकार के अनुदान (subsidies), ऋण माफ़ी, जैसे कईं आर्थिक सहाय के प्रयास युवा किसानों को आकर्षित नहीं कर पा रहें है।
हमें उम्मीद है कि,
पैदावार / उपज के उचित दाम मिले ईसलिए सरकारी उद्घोसित न्युनतम मुल्य,
सरकारी मंडियों के अलावा खुले बाज़ार में किसानों को उपज को बेचने की आज़ादी, और
किसानों के लिए “अनुबंध खेती” का विकल्प
जैसे सरकार के प्रयासों से युवा किसान आकर्षित हो पाएँगे।
फिर भी,
किसानी से जुडी दोनों बुनियादी समस्याएँ वैसी ही बनी रहती है।
ऐसा लगता हैः
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